TITHARI PAKSHI
टिटहरी चिड़िया की अनसुनी कहानी
सुंदर वन के घने जंगलों में टिटहरी चिड़िया का एक छोटा-सा परिवार बरगद की पेड़ पर घोंसला बना कर रहती थी। टिटहरी चिड़िया के घर में बेटा बहू और सास -ससुर के अलावा एक बिनब्याही बेटी भी रहती थी।जो दिन भर घर के कामों को छोड़कर सजने- संवरने में लगी रहती थी। उसे अपनी सुन्दरता पर बहुत घमंड था। चिड़िया के आंखों में लगी काजल उसके चेहरे की नूर बढ़ा रहे हैं। पैर इतने कोमल और मुलायम हैं जैसे मखन ।बदन पर हैं उसकी हल्की सी स्लेटी रंग,सफेद और काले रंग की धारियां उसके सुन्दरता पर चार चांद लगा रहे हैं। टिटहरी चिड़िया की बिटिया स्वयं को नदी के पानी में देख कर फूले ना समाती थी। एक दिन जेठ की भरी दोपहरी में पेड़ की छाया में बैठकर सज -संवर रही थी । उस समय चिड़िया की मां अपने सिर पर लकड़ी की गठरी रखे तपती धूप में प्यास से तड़पती हुई थकी -हारी घर पहुंचती है और अपनी बिटिया से एक गिलास पानी मांगती है । पास में बैठी हुई उसकी बेटी पानी देने से यह कहते हुए माना कर दी कि वह अभी तुरंत कंघी आईना ले कर बैठी है। सो तुम खुद जाकर पानी ले कर पी लो। इतने में घर के अन्दर काम कर रही उसकी बहू कोयल पानी का गिलास लेकर टिटहरी चिड़िया की ओर बढ़ा दी और ताड़ की पत्तियों से बनी बेनिया से अपनी सास के उपर हवा झलने लगी ।क्रोध से कांपती हुई टिटहरी चिड़िया अपनी बेटी को श्राप दे हुए कहने लगी -----जाओ आज से तुम पानी की एक -एक बूंद के लिए तरसती रहेगी भरी समुंदर में भी तुम्हें एक - दो बूंद ही पानी नसीब होगा और तुम कभी बैठ कर पानी नहीं पी पाओगी। कहते हैं तब से आज तक टिटहरी चिड़िया को किसी ने बैठ कर पानी पीते हुए नहीं देखा है। चिड़िया पानी की खोज में दिन भर इधर से उधर उड़ती रहती। कहीं पानी मिल जाता तो वह अपनी चोंच से
एक बूंद पानी उठा कर हेटेटेंव -हेटेटेंव कर उड़ते हुए उपर की ओर जाती फिर पानी लेने नीचे उतरती ।
दूसरी ओर टिटहरी चिड़िया अपनी बहू कोयल से खुश होकर उसे आशीर्वाद देते हुए कहने लगी -----जाओ बहू आज से दुनिया में तेरा बहुत मान -सम्मान होगा। बैशाख महीने में जंगल का आम और दह की मछली का सब्जी सबसे पहले तुम्हें भोग लगेगा फिर लोग आम का स्वाद चखेंगे। कहते हैं तब से सनातन धर्म मानने वाली सभी महिलाएं सबसे पहले कोयल रानी को आम भेंट चढ़ाती है और स्वंय बाद में आम खाती हैं।